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मंगलवार, 17 जुलाई 2012

स्तब्धता के राज्य में


निर्जन वन-प्रांतर 
अगल-बगल खड़े -शांत,मूक प्रहरी से 
कतार-बद्ध- वृक्ष 
संसृत-सृजित
 झुकी हुयी प्रफुल्ल बल्लियों के मेहराब 
बीच से निकलती 
अंतहीन वीथिकाओं की जाल 
शांति की सजीव मूर्ति
स्फूर्तिमय मारुत
और दम तोड़ती अलकस
झूमते शाख 
निस्तब्धता का राज्य 
हर क्षण साधना में रत -चुपचाप!
मित्रो खामोश होकर आओ 
कहीं टूट न जय ध्यान 
साधना में रत ऋषि -मुनियों का 
वेद-ऋचाओं की
 भूल न जायें कड़ियाँ- 
गाते विहग-दल
धीरे-धीरे आओ सरिता किनारे तक 
शुभ्र-धवल-नभ 
फैला है पैर पसारे
जल में विश्रांत 
सामने उपत्यका में 
मृग-शावक निर्भय भर रहे कुलांचे   
 आओ!उस पार जाने के लिये नौका ढूढें .       

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