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सोमवार, 9 जुलाई 2012

सोचा था कुछ,और कुछ हो गया
कोई बात नहीं- आगे फिर कभी !

सपने देखना बुरा तो नहीं है
साकार नहीं हुए तो - न सही  

चलकर  चाँद में सीढ़ी लगाते हैं
हौसले ऊंचे हैं,देर किस बात की

दिन में तारे देखने की बात कह
न जाने क्यों ? हँस पड़े सभी

वक्त की बात,वक्त नहीं सुनता
वक्त सुनेगा - भले अभी नहीं

अमावस की रात सूरज उग आया 
वक्त पलटा खाया,भाग्य ही सही


कौन कहता है सितारे दूर हमसे 
ख्वाहिश तो पालो,उन्हें पाने की


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