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शनिवार, 21 जुलाई 2012

एक यात्रा विंध्यांचल की




टीले-मैदानों के बीच 
आहार भक्षण के बाद 
उनींदा-आलसमय,टेढ़ा-मेढ़ा
पसरा हुआ 
अजगर की तरह - सड़क 
इसके ऊपर दौड़ते वाहन, आते-जाते 
कान में भिन-भिनाते 
मक्खियों की तरह
स्तब्धता को चीरते हुये
सागोन,सरई,पलास,महुआ 
नीम, आम ,बेर,हल्दू,बीजा 
के घने दारख्तों के बीच 
उग आये यूं.के. लिप्टस
आयातित विदेशी-संस्कृति का 
गंध लिए 
अस्वीकार कर दिया हो जैसे  
पूरी बिरादरी ने 
जाति में उन्हें मिलाने से 


पीछे भागते 
मील के पत्थर फासलों में खड़े 
'ट्रैफिक' के सिपाहियों की तरह 
कर्तव्य में मुस्तैद सावधान मुद्रा में 
ज्ञान कराते दिशा और मंजिल 
निरंतर यातायात के 
उपत्यका के नीचेबसे 
गाँव ठिठुर-ठिठुर से 
प्रातः-प्रातः 
आगे सिमट आया है 
आधा गाँव 
विदा देने के लिए 'लारी' में
ससुराल जाती नव-वधु को 
कपोलों में उसके लरजते अश्रु-कण 
थम गए हैं ओस के बूंदों की भांति 
कोमल पातों पर 


गोष्ठी से भागे गाय के पीछे 
भागता हुआ ग्वाला सा 
आसमान में भास्कर 
जल भरने जाती पोखरे में 
गीत गाती युवतियां गागर लिये
दूर खेतों में हल चलाते किशान 
अब दिखने लगा है चिमनियों का धुंआ 
समाप्त होते कोहरों के पार 

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