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गुरुवार, 19 जुलाई 2012

ओलों की मार


ओलों की मार 
तरुणाई में आगया पतझर 
मसल दिया है फूलों को 
लगने से पहले फल 
चना के 

खड़े हैं -
बाली-विहीन-तने गेहूं के 
खेतों में     
रिपु-दल ने किया हो नरसंहार  
शिर-विहीन धड जैसे 

जैसे बदहवसियों ने 
किया हो नोच-खसोट  
अल्प-वय किशोरियों के साथ 
खो होशो-हवास भागीं छोड़ 
चुनरियाँ-हरिताभ 
तर-बतर फ़ैली पड़ी
मैदानों पर 
बिखरे पड़े राहर की -
पत्तियां,शाखाएं,अधपके फल 

रो रहा दुःख-विह्वल किशान 
खोकर सर्वस्व हैरान 
खा-खा कर पछाड़
दिलाशा की आशा नहीं 
सहायता की कोइ उम्मीद नहीं 
नियमों की तलवार खींचता 
पत्थर है प्रशासन 
किशन का भाग्य भी है इस देश की तरह 

इस वर्ष न आयेंगे फल 
आम्रतरुओं में 
न फूलेंगे पलास,सेमल,कचनार 
ऋतुराज की सूनी रहेगी दरबार         

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