ओलों की मार
तरुणाई में आगया पतझर
मसल दिया है फूलों को
लगने से पहले फल
चना के
खड़े हैं -
बाली-विहीन-तने गेहूं के
खेतों में
रिपु-दल ने किया हो नरसंहार
शिर-विहीन धड जैसे
जैसे बदहवसियों ने
किया हो नोच-खसोट
अल्प-वय किशोरियों के साथ
खो होशो-हवास भागीं छोड़
चुनरियाँ-हरिताभ
तर-बतर फ़ैली पड़ी
मैदानों पर
बिखरे पड़े राहर की -
पत्तियां,शाखाएं,अधपके फल
रो रहा दुःख-विह्वल किशान
खोकर सर्वस्व हैरान
खा-खा कर पछाड़
दिलाशा की आशा नहीं
सहायता की कोइ उम्मीद नहीं
नियमों की तलवार खींचता
पत्थर है प्रशासन
किशन का भाग्य भी है इस देश की तरह
इस वर्ष न आयेंगे फल
आम्रतरुओं में
न फूलेंगे पलास,सेमल,कचनार
ऋतुराज की सूनी रहेगी दरबार
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