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रविवार, 1 जुलाई 2012


भाइयो माफ करना यदि बुरा लगे 
खरी बात करने की आदत पुरानी है 


कबीरा तो नहीं हूँ न ही बनना है 
आदर्श मेरा कबीर की जुबानी है 


मैं घर फूकने की बात नहीं करता 
व्यवस्था बदलने का सूत्र क़ुरबानी है 


राहगीर ठगे जाते हैं हर-बार क्यों 
जाति,धर्म सब बाटने की कहानी है


आश्वासन फूलते हैं,घोषनाएं पकती हैं
ऐ खोखले पेड़ो काफी एक चिनगारी है


यह बाग़ हमारी जागीर है पुस्तैनी
पीढ़ियों ने गाढे रक्त से की सिंचाई है


खोखले वृक्षों में बसेरा नहीं बनाना
पक्षियों,आंधियाँ इन्हीको गिरती हैं

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