भाइयो माफ करना यदि बुरा लगे
खरी बात करने की आदत पुरानी है
कबीरा तो नहीं हूँ न ही बनना है
आदर्श मेरा कबीर की जुबानी है
मैं घर फूकने की बात नहीं करता
व्यवस्था बदलने का सूत्र क़ुरबानी है
राहगीर ठगे जाते हैं हर-बार क्यों
जाति,धर्म सब बाटने की कहानी है
आश्वासन फूलते हैं,घोषनाएं पकती हैं
ऐ खोखले पेड़ो काफी एक चिनगारी है
यह बाग़ हमारी जागीर है पुस्तैनी
पीढ़ियों ने गाढे रक्त से की सिंचाई है
खोखले वृक्षों में बसेरा नहीं बनाना
पक्षियों,आंधियाँ इन्हीको गिरती हैं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें