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बुधवार, 18 जुलाई 2012

मई की एक रात


रात्रि का चौथा पहर
'मावस की
पौढ़ा हुआ है
सन्नाटे की गोद में
 सारा गाँव डूबा तिमिर जाल में

अचानक प्राची से
तेज हवा के झोकों का आगमन
इन्द्रदूतों का आकाश में रस-कस
धूल का गुबार लिए साथ
सीटी  बजाता
 चक्रवात

कुत्तों का करुण विलाप
घब्र्राए मवेशी भागे
बंधन तोड़
दुबक गए हैं झोपड़ों में
आँगन-फरके में सोते लोग
कांप रही है सारी झोपड़ी
किशान की तरह
सुनकर नीलामी की डुग्गी

बाहर मेमने के मिमियाने की आवाज
भीतर माँ के स्तन से चिपके
आबोध-बालक का कुनमुनाहट
ओह!कब बीतेगी
कसमसाहट भरी यह रात
भारी,एक युग की तरह !      

3 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन शब्दचित्र के लिए बधाई आपको !

    please remove useless word verification from here.

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  2. workin on removing word verification .. thanks for the feedback .

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद सतीश सक्सेना जी! हृदय से आभारी हूँ ,मेरी प्रेरणा बढ़ने के लिए .

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