हे चौरस- समतल !
तुम कैद हो सदियों से
ऊँचे दीवारों के बीच
केवल ताक सकते हो
छोटे से आसमान को,
ताप सकते हो
खड़ी दोपहर की धूप
बरसात भी नहीं लाती हरियाली
देती नहीं अंकुरण तुम्हारे जीवन को
छीन लेती हैं दीवारों की सायाएं
चाँदनी की शीतलता भी
हे भूखंड ! तुम गवाह हो-
मानव इतिहास के ,
जन्म- मृत्यु,उत्कर्ष-अपकर्ष के
बने राम और कृष्ण
तुम्हारे रज-कणों में सनकर
छू रहा मानव आज
गगन के सितारों को
तुम्हारे वात्सल्ययुक्त
आँचल में पल- बढ़ कर .
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