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शनिवार, 7 जुलाई 2012

हसरतें दिल की उड़ रही हैं हवा में ऐसे
अंगार दबे राख में यूँ पानी किसी ने डाला

रात भर साथ देने का वादा था समां का
न जाने हवा के झोकों ने कब बुझा दिया

काल-चक्र ने जब भीषण ज्वाला उगला
सबसे पहले आंसुओं ने घर अपना छोड़ा

चौखटों की हद पार कर आंसू  निकले
परदेश से लौटकर बेटा अपने घर आया

होंठ कापें,तन थर-थाराया,पलकें अपलक
आंसुओं ने बाहर आने का रास्ता न पाया

कम्पित तन रोम-रोम में कैक्टस उग आये
अजीब मिलन थी,चुभन में भी आनंद आया



 

      

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