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बुधवार, 18 जुलाई 2012

मेरा घर


पूरे कुनबे को साथ लेकर
कमर-तोड़ परिश्रम कर
पत्थर एकत्रित किया बहुत सारे
ढेर से बहुत छोड़े,चुने कुछ
उनमें तराशे बहुत सारे
खड़ा किया तब खुद का  
अपने परिवार के श्रम के पसीना से
बनाया एक एक दीवार ,छत,खिड़की दरवाजे
फिर बना मकान' मेरा
 बचाता है-
ठण्ड,धूप,और बरसात से  
देता है सुरक्षा हर आपदाओं से 
प्यार,सहयोग,सामंजस्य और सुरक्षा का
निःशुल्क बीमा है मेरा घर
खालिश दीवार और छत नहीं      
तमाम यादगार पलों का एल्बम है
सभी रिश्तों का,संयोग वियोग,खुशियों का
कही भी रहूं जो मेरे साथ रहती है
कही भी कितने भी दिन बाहर रहूं 
लौटकर घर आता हूं, 
जीवन संघर्ष से,शुकून यही मिलता है
क्योंकि मिट्टी में और हवाओं में यहां गंध है 
मेरी मां के शीतल आंचल के छांव का
देते हैं पहरे यहां सितारे बन मेरे माता पिता
स्वर्ग से भी प्यारा मेंरा घर है
मौत आए तो बस यही इच्छा है
आगोश में अपने घर के मरूं 
जहा भी हुं लौटकर घर आ जाऊं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. यह विश्वास बना रहे, घर हमेशा अभेद्य रहेगा !
    शुभकामनायें आपको !

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  2. धन्यवाद !आशा करता हूँ आप जैसे बुद्धजीवियों का मार्गदर्शन एवं प्रेरणा मुझे हमेशा मिलती रहेगी.

    जवाब देंहटाएं

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