कई रंग भरे थे आदर्शों के मन में
रंग कला चढ़ा बाकी बेअसर रहे
बाहर झांकने की हिम्मत न हुई
प्याले में आते रहे तूफ़ान कितने
ढूढता रहा अर्थ जिंदगी का तमाम ऊम्र
गुजरते रहे मील के पत्थर कितने
तपता रहा आग में अन्दर ही अन्दर
हाँथ सेकने को राहगीर तमाम मिले
देखते रहे बस सपने सुनहरे
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