मौसम बदल जाता है मिजाज की तरह
कभी धूप कभी बरसात नज़र आता है
ऊफ़ानों में तैरती कश्तियों का भाग्य
ऐ खुदा ! तूने रेत पर लिखा रक्खा है
रहम कर इन खौफ़नाक मंजरों से
तू है बनाने वाला,तू ही मिटा रहा है
रेत पर बने इन हवेलियों की कीमत
सबको पता,पर नहीं किसी को पता है
पत्तियों पर शबनमी-कण है ये जीवन
अभी आये थे और अभी चले जाना है .
कभी धूप कभी बरसात नज़र आता है
ऊफ़ानों में तैरती कश्तियों का भाग्य
ऐ खुदा ! तूने रेत पर लिखा रक्खा है
रहम कर इन खौफ़नाक मंजरों से
तू है बनाने वाला,तू ही मिटा रहा है
रेत पर बने इन हवेलियों की कीमत
सबको पता,पर नहीं किसी को पता है
पत्तियों पर शबनमी-कण है ये जीवन
अभी आये थे और अभी चले जाना है .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें