खन- खनाती चूड़ियों सी
तोड़ती सन्नाटा माहौल की
सैलाब बनकर
तुम्हारी हंसी
एक तरासे हुये बुत की तरह
मुस्कुराहट अधरों पर मेरे
तुम्हारा साथ देतीं
आती किसी
घुप- अंधियारे- गहवर से
हटाती विशाल शिला को
शंकित,संकुचित, बालात
भाव -पढ़ती
अर्थ ढूढती चौकन्नी
असभ्य कहलाये जाने के भय से
मजबूर करता है विगत
यथार्थ, ढोंग को
क्षण-प्रतिक्षण बदलता
तुम्हारा स्वर
तुम्हारा उन्माद अतिरंजित
बहा न ले जाय कहीं
रेत में बने मेरे घरौंदे को .
तोड़ती सन्नाटा माहौल की
सैलाब बनकर
तुम्हारी हंसी
एक तरासे हुये बुत की तरह
मुस्कुराहट अधरों पर मेरे
तुम्हारा साथ देतीं
आती किसी
घुप- अंधियारे- गहवर से
हटाती विशाल शिला को
शंकित,संकुचित, बालात
भाव -पढ़ती
अर्थ ढूढती चौकन्नी
असभ्य कहलाये जाने के भय से
मजबूर करता है विगत
यथार्थ, ढोंग को
क्षण-प्रतिक्षण बदलता
तुम्हारा स्वर
तुम्हारा उन्माद अतिरंजित
बहा न ले जाय कहीं
रेत में बने मेरे घरौंदे को .
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