ठंडी में ठिठुरते हैं ग्रीष्म के तपन में तपते हैं
कीचड में ले पूरा परिवार, हम काम करते हैं
एक-दो एकड़ जमीन है,इंद्र-देव पर निर्भय है
वर्षा हुई ठीक - तो सरकार का योगदान है
वर्षा नहीं हुई तो,दाने-दाने को मोहताज हैं
भविष्य देश के,हम इस देश के किशान हैं
दिन-रात मेहनत कर हम फसल उगाते हैं
खुद भूखे रहकर देश की भूख मिटाते हैं
फसल लेकर जब बाजार में बेचने जाते हैं
व्यापारी सस्ते में ले,मुनाफा खूब कमाते हैं
जो मिल जाए उनसे घर का खर्च चलाते हैं
लिया था जो कर्ज,वह मूल-ब्याज चुकाते हैं
बिटिया की शादी करना है,लड़के को पढ़ाना है
पत्नी का इलाज कराने अस्पताल ले जाना है
कर्ज के भार लदे जिन्दगी का ताना-बाना है
भ्रष्टाचार में डूबी सरकार का खाली खजाना है
माफिया भूमि लूट रहे,उन्हें कब्जा दिलवाना है
मिली भगत सरकार का,कोइ न कोइ बहाना है
कर्जा,अकाल का भार कृषक झेल नहीं पाता
आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प रह जाता
ज़िंदा रह जाते जो,जीते जी है मौत ने मारा
नारकीय जिन्दगी जी करते हैं, अपनी गुजारा
नभ से सर्वेक्षण करना ऊँचे पद वालों का धंधा
एसी कमरे,कार में बैठकर करते हैं उनकी चिंता
'जय-जवान,जय-किशान' का नारा लगाते हैं
नारे और भाषणों से बेवकूफ हमें बनाते हैं
किशानों को लूट-लूट कर घर अपना बनाते हैं
चोरी करते ये ख़ुद, और चोर हमें बताते हैं
आज की बात नहीं करते,हमें भविष्य बताते हैं
माटी का सौगंध खा थूक कर चट कर जाते हैं
देश की जनसंख्या का ८०%हमारी संख्या है
२०%लोगों के पास, देश का ८०% पैसा है
कृषि प्रमुख व्यवसाय, कृषि-देश का दर्जा है
गरीबी में डूबा किशान,कर रहा आत्महत्या है
समस्याएं नहीं सुनती,गूंगी-बाहरी सरकार है
उम्मीद नहीं कोई अब,नई रौशनी की तलाश है
कीचड में ले पूरा परिवार, हम काम करते हैं
एक-दो एकड़ जमीन है,इंद्र-देव पर निर्भय है
वर्षा हुई ठीक - तो सरकार का योगदान है
वर्षा नहीं हुई तो,दाने-दाने को मोहताज हैं
भविष्य देश के,हम इस देश के किशान हैं
दिन-रात मेहनत कर हम फसल उगाते हैं
खुद भूखे रहकर देश की भूख मिटाते हैं
फसल लेकर जब बाजार में बेचने जाते हैं
व्यापारी सस्ते में ले,मुनाफा खूब कमाते हैं
जो मिल जाए उनसे घर का खर्च चलाते हैं
लिया था जो कर्ज,वह मूल-ब्याज चुकाते हैं
बिटिया की शादी करना है,लड़के को पढ़ाना है
पत्नी का इलाज कराने अस्पताल ले जाना है
कर्ज के भार लदे जिन्दगी का ताना-बाना है
भ्रष्टाचार में डूबी सरकार का खाली खजाना है
माफिया भूमि लूट रहे,उन्हें कब्जा दिलवाना है
मिली भगत सरकार का,कोइ न कोइ बहाना है
कर्जा,अकाल का भार कृषक झेल नहीं पाता
आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प रह जाता
ज़िंदा रह जाते जो,जीते जी है मौत ने मारा
नारकीय जिन्दगी जी करते हैं, अपनी गुजारा
नभ से सर्वेक्षण करना ऊँचे पद वालों का धंधा
एसी कमरे,कार में बैठकर करते हैं उनकी चिंता
'जय-जवान,जय-किशान' का नारा लगाते हैं
नारे और भाषणों से बेवकूफ हमें बनाते हैं
किशानों को लूट-लूट कर घर अपना बनाते हैं
चोरी करते ये ख़ुद, और चोर हमें बताते हैं
आज की बात नहीं करते,हमें भविष्य बताते हैं
माटी का सौगंध खा थूक कर चट कर जाते हैं
देश की जनसंख्या का ८०%हमारी संख्या है
२०%लोगों के पास, देश का ८०% पैसा है
कृषि प्रमुख व्यवसाय, कृषि-देश का दर्जा है
गरीबी में डूबा किशान,कर रहा आत्महत्या है
समस्याएं नहीं सुनती,गूंगी-बाहरी सरकार है
उम्मीद नहीं कोई अब,नई रौशनी की तलाश है
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