चितकबरे पंख फैलाये
आसमान में
भर आये
टुकड़े-टुकड़े बादल
गहराते
गौरैया चह-चहाती हैं
शुबह -शुबह
उदास गत सा -वीणा तंत्री का
बतियाती
गृह त्याग काम की खोज में जातीं
आशंकाग्रस्त
मजदूर महिलाओं सी .
लाल गेंद को 'किक' लगा
पहुंचा देता
चंचल छोकरा क्षितिज !
नीले पहाड़ के नीचे
किसी अंधकारमय गह्वर में
ताकता रह जाता अनिमेष
गोली प्राची,
आज का मेरा अनमना शुबह .
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