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रविवार, 8 जुलाई 2012

अनमना शुबह !


चितकबरे पंख फैलाये
आसमान में
भर आये
टुकड़े-टुकड़े बादल
गहराते
गौरैया चह-चहाती हैं
शुबह -शुबह
उदास गत सा -वीणा तंत्री का
बतियाती


गृह त्याग काम की खोज में जातीं
आशंकाग्रस्त
मजदूर महिलाओं सी .




लाल गेंद को 'किक' लगा 
पहुंचा देता
चंचल छोकरा क्षितिज !
नीले पहाड़ के नीचे 
किसी अंधकारमय गह्वर में 
ताकता रह जाता अनिमेष 
गोली प्राची,




आज का मेरा अनमना शुबह  .

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