बरगद के नीचे चारपाई पर
अलसाया बैठा मैं
आस-पास बैठे लोग
कुछ बतियाते धीरे-धीरे .
कुछ चुप -चाप
उनींदे से निहारते उदास
आसमान में खंड-खंड बादल
मंडराते गिद्ध ऊंचाइयों पर
फरके में दरवाजे के पास
बैठी क्रंदन करती
गाँव की महिलाएं
टुक-टुक देखते कुत्ते खड़े चुप-चाप
सिमट आया है सारा गाँव
बच्चे कुछ खड़े ,कुछ बैठे
शांत बूढ़ों से
निहारते कातर
कृष्णा लुहार ने आज रात
अपने घर के दोगई में
कर लिया है 'आत्महत्या'
फांसी लगाकर
पांच पंचों के सामने मैंने/
पूंछा उसकी पत्नी से /
पति के आत्महत्या का कारण /
बोझ था कर्जे का, सुबकते हुए बताया /
दिन भर मजदूरी करता था /
उसमे गुजारा नहीं होता था /
बिटिया जवान थी,विवाह करना था /
थोड़ी सी जमीन थी, बरसात नही हुई /
बीज भी घर नहीं आया /
मेरे पेट में दर्द उठता था /
डाक्टर ने आपरेशन के लिए बोला था /
इन तमाम चिंताओं से परेशान था /
रात भर नही सोता था/
परेशानियों में छोड़कर अकेला /
मुझे चला गया।/
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