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शनिवार, 7 जुलाई 2012

फागुनी-एहसास

फागुन का एहसास हुआ आज
झुक गयी डाल
कचनार के
हजारों -हजार  फूल के बोझ से
मन-मदालस

आये फगुहार
मेरे आँगन
भंग के तरंग के साथ
फागुनी- पवन गाने फाग
फूल रहे हैं टेसू कपोलों पर
उमंगों की-रंगों की 
भरकर लायी भगोने
सज-धज कर आयी
खेलने होली
कोमलांगी धूप सालज्ज
आज  की सुबह
मेरे छत पर
नृत्य करते उमग-उमग कर
पीले पत्तों के बगूले
मसल डाला है नरम-नरम दूबों को
गुलाबी गुलाल के रज-कणों से

लाल रंग से सराबोर खड़ा है
गंजा बौराया सेमल
कर-तल कर उछल-उछल 
करतीं ठिठोलियाँ
छतनार महावट-पत्र,पीपल

भेद-भाव,बंधनों से परे
इन्द्रधनुषी रंगों का
यह सतरंगी एहसास
लेकर आया है मधुमास .
       


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