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सोमवार, 30 जुलाई 2012

रेवा की सखी चकरार


बजाग थाना-प्रभारी के अपने ५ वर्षीय कार्यकाल के दौरान गाडासरई लो.नि.वि.के चकरार-नदी किनारे स्थित विश्रामगृह में बहुत समय गुजारा.चकरार,म.प्र.की जीवन-दायनी नर्मदा की सहायक नदी हैजो चाडा के पहाड़ियों से निकलकर चंदन-घाट के पास नर्मदा से मिलती है.विश्व-प्रसिद्ध मानव-शास्त्री एल्विन बैरियर 
की 'द बैगा' पुस्तक के बैगा चाडा के तराइयों में निवास-रत हैं,जो आज भी आदिम-संस्कृति को धारण किये होने की वजह से पर्यटकों और सारे विश्व के मानव-शास्त्रियों के आकर्षण का केंद्र बने हैं.चकरार नदी के रूठने और जबलपुर-अमरकंटक-मार्ग अवरुद्ध करने के फोटो मेरे गाडासरई के मित्रों ने ऍफ़.बी.के माध्यम से भेजा तो मुझे अपने बीते समय की रचना याद आयी और पूरानी डायरी से ढूढ़ कर पोस्ट कर रहा हूँ -   


रेवा की सखी चकरार
'कंचन-वर्णा' ने ले लिया है 
बैगा महिलाओं से उधार 
धूमिल,मटमैली चुनरी 
बदल कर परिधान,
परिहास करती 
सखी से मिलने चली 
मुस्कुराती,हंसती,खिल-खिलाती
कभी लजाती,कभी सकुचाती 
क्षण-प्रतिक्षण भाव बदलती 


चांडा के तराइयों से कुलांचे भरती
हिचकोले खाती,अठखेलियाँ करती 
नर्तन करती ,मद से इठलाती 
सघन-साल-तरु-सज्जित तट संग 
वन-प्रांतर का भ्रमण करती 
सर्पिल-फेनिल-उर्मियाँ 
कल-कल,झर-झर नाद करतीं 
बन्ध-निर्बंध छंद रचतीं 
विहाग-दल-संग मंगल गान करतीं 


अमर-प्रेम हिय में संजोये 
आजीवन साथ का संकल्प लिये
रेवा से मिलने चकरार चली  

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