जीवन की एकरसता
नासूर न बन जाय
आभासी दुनिया में
चलो मन बहलाया जाय .
परदे के किस्सागोई से
अपना वास्ता जोड़ा जाय
पात्रों के सुख-दुख को
अपना बनाया जाय .
जीवन के संघर्षों को
कुछ छण मन भूल जाय
किसी बाबा से मिलकर
शान्ति ढूढा जाय .
क्या रखा है मंदिरों में
मूर्तियों के शिवाय
मधुशाला में चलकर
सुरा-पान किया जाय .
ज्योति-पथ से हटकर
अन्धेले के सन्नाटों में
कहीं एकांत ढूढकर
किसी पत्थर में बैठा जाय .
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