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रविवार, 15 जुलाई 2012

नि:शेष




स्वासों का तूफ़ान
सूने आकाश में मनके
विगत दौड़ने लगा चलचित्र कि तरह
घिर आये बादल घुमड़-घुमड़ कर
टहनी से टूटे सूखे पत्तों का
ऊँचा बवंडर
अनियंत्रित भावनाओं का
बाँध आखिर टूट गया
बगार में पानी फ़ैल गया
ढाल से फिसलकर
बूँद-बूँद टपक गया
वर्षों से प्यासी धरती सूख गयी
 नि:शेष रहा पास-
रोटी हुई रात ,
बिखरी हुई चांदनी ,
घर के उदास आंगन में -
एक मुरझाई तुलसी ,

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