मेरी 87 वर्षीय माँ लकवा-ग्रस्त होकर बिस्तर में पड़ी हैं .प्रभु के नाम यह पाती, मैं उनकी तरफ सेलिख रहा हूँ .
द्वार में वन्दनवार सजाया उपवास रखा धर्म-पथ पर चला
करा जल प्रक्षालन,वस्त्र पहनाया दान किया,जीवों पर दया किया
चन्दन घिस तिलक लगाया आठो-याम तेरा ध्यान किया
केशर और सुगंधि लगाया . अनजाने में ही कोई पाप किया
दूर्वा-दल,बेल-पत्र चढ़ाया मंदिर गया,तीर्थाटन किया
अक्षत छिडके,तुलसी-दल चढाया ग्रंथों, मन्त्रों का पाठ किया
बाग़ पुष्प के चुन-चुन कर जीवन में न अहंकार किया
भक्ति-भाव से तुम्हे सजाया साधू-संतों का सत्कार किया
श्रीफल का नैवेद्य चढ़ाया भजन-संकीर्तन में भाग लिया
भांति-भांति के भोग लगाया सबके प्रति समभाव रखा
घृत-बाती का दीप जलाया पंकों में घिर कर भी सदा
अष्ट-गंध का हवन किया कमल की तरह अलिप्त रहा
कीरत आपकी आरती गाया अब शैया में पड़ा असहाय
संध्या-वंदन, प्रभाती गाया उम्र और रोगों ने वार किया
घंटी-घड़ियाल, शंख बजाया दाना-पानी को हुआ मोहताज
नाम की तेरे जाप किया दुसह कष्टों ने प्रहार किया
सब हस कह रहे हैं बार-बार
ऐसा तूने क्यों अभित्रास दिया ?
धर्म-परायण का यह हाल हुआ
अनुत्तरित प्रश्न,प्रभु तू ही बता .
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