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शनिवार, 11 अगस्त 2012

झोंकों में पुष्प-पंखुड़ी बिखरती रहीं 
जीवन अपनी बेबसियाँ कहती रहीं 

सारी रात फूल बारिश में भीगते रहे 
शुबह की  धूप में आँखें जलती रही  

उठो भी अब चलने का वक्त आया 
भोर की हवाये कान में फुसफुसा रहीं 

बौछारों में तितलियाँ भटकती रहीं 
छुपने का  ठिकाना तलाशती रहीं 

खोने के लिए अब कुछ पास न रहा 
एक मकान था,बारिश गिरा गयी 

अँधेरे में जुगनू टहलते रहे हवा में 
नाकामियाँ कहानियां कहती रहीं 

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