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सोमवार, 13 अगस्त 2012

खंटियों में टंगा सच


थके-हारे
शाम को 
पिताजी घर लौटे 
अदालत से
छड़ी कोने में रखा
झोला और कुर्ता
खंटियों में टाँगे
एक गिलास पानी ले
माँ आगे आयीं
पूछा उनसे "क्या हुआ ?"
हतास स्वर में पिताजी बोले
उँगलियों से इंगित कर,"देख !
खंटियों में लटक रहा'सच'
कुर्ता और झोले की तरह
वर्तमान में चल रहा बस
'फरेब!"

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