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रविवार, 5 अगस्त 2012

करमा

(करमा बैगा ,गोंड जन-जातियों में प्रचलित लोक नृत्य-गीत."मादर" पखवाज जैसा मिटटी का बना वाद्य-यंत्र)  
आ रही है कर्ण-प्रिय,सुरीली आवाज 
हजारों-हजार वर्ष पूर्व निकलकर  
पाषाण गुफाओं से 
आदिम काबीले की सुर-यात्रा  यह 
--स्वतःस्फूर्त,अनवरत 

विरह,प्रणय निवेदन के गीत 
मादर की थाप और करमा के बोल 
शैला-नृत्य करते गन्धर्व 
वर्जनाओं से मुक्त,मद-लिप्त 
मंद्र,मध्य,तेज उत्स-लय अनुगुंजित हो 
प्रतिध्वनित हो रही है घाटियों में 
सुर में सुर मिला रहे हैं शिखर मानो 
सभासद सालवन कर रहे करतल 
थिरकती मंद-मंद पवन मद में हो 
सूखे पत्ते करते पद-ताल 
कभी रेखीय,कभी वर्तुल चाल 
सभापति मध्य-रात्रि-कलानिधि 
उच्चासन नभ में आभामय 
सितारे दे रहे ताल 
  

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