(करमा बैगा ,गोंड जन-जातियों में प्रचलित लोक नृत्य-गीत."मादर" पखवाज जैसा मिटटी का बना वाद्य-यंत्र)
आ रही है कर्ण-प्रिय,सुरीली आवाज
हजारों-हजार वर्ष पूर्व निकलकर
पाषाण गुफाओं से
आदिम काबीले की सुर-यात्रा यह
--स्वतःस्फूर्त,अनवरत
विरह,प्रणय निवेदन के गीत
मादर की थाप और करमा के बोल
शैला-नृत्य करते गन्धर्व
वर्जनाओं से मुक्त,मद-लिप्त
मंद्र,मध्य,तेज उत्स-लय अनुगुंजित हो
प्रतिध्वनित हो रही है घाटियों में
सुर में सुर मिला रहे हैं शिखर मानो
सभासद सालवन कर रहे करतल
थिरकती मंद-मंद पवन मद में हो
सूखे पत्ते करते पद-ताल
कभी रेखीय,कभी वर्तुल चाल
सभापति मध्य-रात्रि-कलानिधि
उच्चासन नभ में आभामय
आ रही है कर्ण-प्रिय,सुरीली आवाज
हजारों-हजार वर्ष पूर्व निकलकर
पाषाण गुफाओं से
आदिम काबीले की सुर-यात्रा यह
--स्वतःस्फूर्त,अनवरत
विरह,प्रणय निवेदन के गीत
मादर की थाप और करमा के बोल
शैला-नृत्य करते गन्धर्व
वर्जनाओं से मुक्त,मद-लिप्त
मंद्र,मध्य,तेज उत्स-लय अनुगुंजित हो
प्रतिध्वनित हो रही है घाटियों में
सुर में सुर मिला रहे हैं शिखर मानो
सभासद सालवन कर रहे करतल
थिरकती मंद-मंद पवन मद में हो
सूखे पत्ते करते पद-ताल
कभी रेखीय,कभी वर्तुल चाल
सभापति मध्य-रात्रि-कलानिधि
उच्चासन नभ में आभामय
सितारे दे रहे ताल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें