लहरों की अजब चालें है उलटी
पास आती चीजों को दूर फेकती
भूमि को थप-थापाती हैं प्यार से
धीरे-धीरे आगोश में है भर लेतीं
ले लेतीं हैं रंग धरती का उससे
फिरकी ले-लेकर हैं नृत्य करती
कतरा-कतरा गिर-गिरकर बूँदें
लहर बनकर फिर कहर हैं करतीं
रोम-रोम भिगो,स्वर्गीय सुख देतीं
ग्रीष्म तपी भूमि को हैं तृप्त करतीं
दे धरती को हरियाली,वापस जातीं
तटबंधों में जा आराम है फरमाती
पास आती चीजों को दूर फेकती
भूमि को थप-थापाती हैं प्यार से
धीरे-धीरे आगोश में है भर लेतीं
ले लेतीं हैं रंग धरती का उससे
फिरकी ले-लेकर हैं नृत्य करती
कतरा-कतरा गिर-गिरकर बूँदें
लहर बनकर फिर कहर हैं करतीं
रोम-रोम भिगो,स्वर्गीय सुख देतीं
ग्रीष्म तपी भूमि को हैं तृप्त करतीं
दे धरती को हरियाली,वापस जातीं
तटबंधों में जा आराम है फरमाती
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